नागरी लिपि का परिचय एवं वर्तनी
भाषा की ध्वनियों को जिन लेखन चिह्नों में लिखा जाता है उसे लिपि कहते हैं, अर्थात् किसी भी भाषा की मौखिक ध्वनियों को लिखकर व्यक्त करने के लिए जिन वर्तनी चिह्नों का प्रयोग किया जाता है वह लिपि कहलाती है। संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी (गोवा), नेपाली आदि भाषाओं की लिपि ‘देवनागरी’ है। इसी प्रकार अँगरेजी की ‘रोमन’, पंजाबी की ‘गुरुमुखी’ तथा उर्दू की लिपि फारसी है। भारत सरकार के अधीन केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने अनेक भाषाविदों, पत्रकारों, हिंदी सेवी संस्थानों तथा विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के सहयोग से हिंदी की वर्तनी का देवनागरी में एक मानक स्वरूप तैयार किया है जो सभी हिंदी प्रयोक्ताओं के लिए समान रूप से मान्य है।
देवनागरी लिपि का निर्धारित मानक रूप
स्वर
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
अनुस्वार – अं ( . )
मात्राएँ – अ की कोई मात्रा नहीं, जैसे-अंश, अंदेशा, संपदा, हंस जैसे-हँसना धुआँ, चाँद जैसे- अध:पतन, दुःख, मनःस्थिति ।
अनुनासिक – * (चंद्रबिन्दु)
विसर्ग- अ ( : )
व्यंजन
क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ड, ढ, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह
संयुक्त व्यंजन-क्ष, त्र, ज्ञ, श्रा
जैसे-प्रहलाद, पट्टा, अपराह्न ।
गृहीत व्यंजन- क, ख, ग, च, फ़
हल चिह्न ( ) गृहीत स्वर- ऑ (ī) अँगरेजी भाषा से गृहीत स्वर-1 फ़ारसी से गृहीत ध्वनियाँ
जैसे-डॉक्टर, कॉटेज, कॉलेज ।
जैसे- गरीब, ग़ज्जल, फ़न, क़ौम, ख़त
पुनः बाद रखने योग्य
• हम अपनी बात एक दूसरे को भाषा के माध्यम से ही कहते हैं। भाषा के दो रूप होते हैं- (1) मौखिक (2) लिखित
• मौखिक भाषा को लिखने के लिए जिन लेखन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उसे ‘लिपि’
कहते हैं।
भाषा के सीमित क्षेत्र में बोले जानेवाले स्थानीय रूप को ‘बोली’ या ‘उपभाषा’ कहते हैं।
हिंदी की 18 से 22 बोलियाँ 5 उपभाषाओं/विभाषाओं में विभाजित की गई हैं- पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, राजस्थानी, बिहारी तथा पहाड़ी।
भाषा को शुद्ध लिखने व बोलने संबंधी जानकारी देने वाले शास्त्र को व्याकरण कहते हैं।
●हिंदी भाषा की लिपि ‘देवनागरी’ है।