मानव जाति के विकास के सुदीर्घ इतिहास में सर्वाधिक महत्त्व सम्प्रेषण के माध्यम का रहा है और वह माध्यम है-भाषा । मनुष्य समाज की इकाई होता है तथा मनुष्यों से ही समाज बनता है। समाज की इकाई होने के कारण परस्पर विचार, भावना, संदेश, सूचना आदि को अभिव्यक्त करने के लिए मनुष्य भाषा का ही प्रयोग करता है। यह भाषा चाहे संकेत भाषा हो अथवा व्यवस्थित ध्वनियों, शब्दों या वाक्यों में प्रयुक्त कोई मानक भाषा हो। भाषा के माध्यम से ही हम अपने भाव एवं विचार दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाते हैं तथा दूसरे व्यक्ति के भाव एवं विचार जान पाते हैं। भाषा ही वह साधन है जिससे हम अपना इतिहास, संस्कृति, संचित ज्ञान-विज्ञान तथा अपनी महान परंपराओं को जान पाते हैं।
संसार में संस्कृत, हिंदी, अँगरेजी, बंगला, गुजराती, उर्दू, मराठी, तेलुगू, मलयालम, पंजाबी, उड़िया, जर्मन, फ्रैन्च, इतालवी, चीनी जैसी अनेक भाषाएँ हैं। भारत अनेक भाषा-भाषी देश है तथा अनेक बोली और भाषाओं से ही मिलकर भारत राष्ट्र बना है। संस्कृत हमारी सभी भारतीय भाषाओं की सूत्र – भाषा है तथा वर्तमान में हिंदी हमारी राजभाषा (राजकार्य भाषा) है।
भाषा के दो प्रकार होते हैं, पहला मौखिक व दूसरा लिखित मौखिक भाषा आपस में बातचीत के द्वारा, भाषणों तथा उद्बोधनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है। लिखित भाषा लिपि के माध्यम से लिखकर प्रयोग में लाई जाती है। यद्यपि भाषा भौतिक जीवन के पदार्थों तथा मनुष्य के व्यवहार व चिन्तन की अभिव्यक्ति के साधन के रूप में विकसित हुई है, जो हमेशा एक सी नहीं रहती अपितु उसमें दूसरी बोलियों भाषाओं से, संपर्क भाषाओं से शब्दों का आदान-प्रदान होता रहता है। जीवन के प्रति रागात्मक संबंध भाषा के माध्यम से ही उत्पन्न होता है। किसी सभ्य समाज का आधार उसकी विकसित भाषा को ही माना जाता है। हिंदी खड़ी बोली ने अपने शब्द भण्डार का विकास दूसरी जनपदीय बोलियों, संस्कृत तथा अन्य समकालीन विदेशी भाषाओं के शब्द भण्डार के मिश्रण से किया है किंतु हिंदी के व्याकरण के विविध रूप अपने ही रहे हैं। हिंदी में अरबी फारसी, अँगरेजी आदि विदेशी भाषाओं के शब्द भी प्रयोग के आधार पर तथा व्यवहार के आधार पर आकर समाहित हो गए हैं। भाषा स्थायी नहीं होती उसमें दूसरी भाषा के लोगों के संपर्क में आने से परिवर्तन होते रहते हैं। भाषा में यह परिवर्तन धीरे-धीरे होता है और इन परिवर्तनों के कारण नई-नई भाषाएँ बनती रहती हैं। इसी कारण संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि के क्रम में ही आज की हिंदी तथा राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी, बंगला, उड़िया, असमिया, मराठी आदि अनेक भाषाओं का विकास हुआ है।
भाषा के भेद-जब हम आपस में बातचीत करते हैं तो मौखिक भाषा का प्रयोग करते हैं तथा पत्र, लेख, पुस्तक, समाचार पत्र आदि में लिखित भाषा का प्रयोग करते हैं। विचारों का संग्रह भी हम लिखित भाषा में ही करते हैं।
(1) मौखिक भाषा (2) लिखित भाषा
मूलत: सामान्य जन-जीवन के बीच बातचीत में मौखिक भाषा का ही प्रयोग होता है, इसे प्रयत्नपूर्वक सीखने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जन्म के बाद बालक द्वारा परिवार व समाज के संपर्क तथा परस्पर सम्प्रेषण व्यवहार के कारण स्वाभाविक रूप से ही मौखिक भाषा सीखी जाती है। जबकि लिखित भाषा की वर्तनी और उसी के अनुरूप उच्चारण प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता है। मौखिक भाषा की ध्वनियों के लिए स्वतन्त्र लिपि-चिह्नों के द्वारा ही भाषा का निर्माण होता है।